Cyber Fraud Alert: कंबोडिया से बढ़ रही साइबर ठगी, भारत में डिजिटल अपराध का नया खतरा
रिपोर्ट: हेमंत कुमार
नई दिल्ली — इंटरनेट और डिजिटल तकनीक ने जहां एक ओर दुनिया को जोड़ने का काम किया है, वहीं दूसरी ओर साइबर अपराधों के नए-नए रूप भी तेजी से सामने आ रहे हैं। हाल ही में कंबोडिया से संचालित दो अत्यधिक परिष्कृत साइबर स्कैम — “पिग बचरिंग” और “डिजिटल अरेस्ट स्कैम” — ने भारत में हजारों नागरिकों को मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक रूप से प्रभावित किया है। इन साइबर अपराधों का सबसे अधिक असर आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे राज्यों में देखा जा रहा है।
पहले स्कैम को “पिग बचरिंग स्कैम” कहा जाता है। यह स्कैम चीन से निकली एक धोखाधड़ी की रणनीति से प्रेरित है, जहां “सूअर को काटने से पहले मोटा किया जाता है” यानी शिकार को धीरे-धीरे भावनात्मक रूप से जोड़कर, नकली लाभ दिखाकर और फिर एक झटके में सारा पैसा हड़प लिया जाता है। इस स्कैम में ठग डेटिंग ऐप्स, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम या लिंक्डइन जैसे प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करके पीड़ित से संबंध बनाते हैं। कभी प्रेमी बनकर, तो कभी वित्तीय सलाहकार का रूप लेकर ये लोग धीरे-धीरे पीड़ित को नकली ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म (जैसे क्रिप्टो या फॉरेक्स निवेश साइट) में निवेश के लिए प्रेरित करते हैं।
इन प्लेटफॉर्म्स पर पहले छोटे मुनाफे दिखाकर भरोसा बढ़ाया जाता है और जब व्यक्ति अधिक पैसा निवेश करता है, तो वह रकम फंस जाती है या साइट ही बंद हो जाती है। हर महीने भारत में दर्जनों लोगों को लाखों से करोड़ों रुपये की ठगी का सामना करना पड़ रहा है। पीड़ितों को शर्म, सामाजिक कलंक और कानून के डर से सामने आने में झिझक होती है, जिससे अपराधियों को खुली छूट मिलती है।
दूसरा स्कैम है “डिजिटल अरेस्ट स्कैम”, जिसमें ठग खुद को पुलिस अधिकारी, सीबीआई अफसर या कूरियर कंपनी का प्रतिनिधि बताकर वीडियो कॉल करते हैं। वे नकली वर्दी, बनावटी दस्तावेज़ और गंभीर आरोपों की झूठी कहानियों के जरिए पीड़ित को डराते हैं। पीड़ित को बताया जाता है कि उनका आधार नंबर, बैंक खाता या मोबाइल नंबर किसी आपराधिक गतिविधि से जुड़ा है और गिरफ्तारी से बचने के लिए तुरंत भुगतान करना होगा।
इस स्कैम का उद्देश्य डर का शोषण करना है — और यह विशेष रूप से छात्रों, कामकाजी प्रोफेशनल्स और बुजुर्ग नागरिकों को निशाना बनाता है। कई बार पीड़ितों से लाखों रुपये ऐंठ लिए जाते हैं। ठग इस बात का फायदा उठाते हैं कि लोग अक्सर अधिकारियों पर भरोसा करते हैं और साइबर फ्रॉड की तकनीकों से अनजान होते हैं।
हालांकि भारत सरकार, साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ और मीडिया लगातार इन स्कैम्स को उजागर कर रहे हैं, लेकिन इन प्रयासों की प्रभावशीलता सीमित है। कारण स्पष्ट हैं: क्षेत्रीय भाषाओं और स्थानीय सन्दर्भों की अनदेखी, डिजिटल साक्षरता की कमी, और सबसे बड़ी चुनौती — कंबोडिया जैसे देशों में स्थित इन साइबर गिरोहों तक भारत की कानूनी पहुँच न होना।
इस खतरे से निपटने के लिए कई स्तरों पर बदलाव की जरूरत है। सबसे पहले, अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है — Binance, Meta, Telegram और अन्य ग्लोबल डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को भारत सरकार के साथ मिलकर ऐसे स्कैम नेटवर्क की पहचान कर उन्हें ब्लॉक करना चाहिए। साथ ही, भारत को कंबोडिया पर कूटनीतिक दबाव बनाना होगा कि वह साइबर अपराध अड्डों पर कार्रवाई करे।
इसके अलावा, एक ऐसा समुदाय-आधारित रिपोर्टिंग सिस्टम बनाया जाना चाहिए, जहां पीड़ित शर्म के डर के बिना अपनी शिकायत दर्ज कर सकें। सेवा प्रदाता कंपनियों को भी ऐसे स्कैम्स को पहचानने वाले एल्गोरिदम और चेतावनी प्रणाली विकसित करनी चाहिए, जिससे उपयोगकर्ताओं को पहले से अलर्ट मिल सके।
भारत एक युवा, डिजिटल राष्ट्र है — और इसी वजह से साइबर ठग इसे आसान निशाना मानते हैं। लेकिन जागरूकता, तकनीकी उपाय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से इस खतरे को रोका जा सकता है।


