प्रयागराज कुंभ में ज्योतिर्मठ शंकराचार्य ने सनातन संरक्षण परिषद का गठन किया। धर्मस्थलों की सुरक्षा और सनातन धर्म की गरिमा बनाए रखने के उद्देश्य से यह ऐतिहासिक कदम उठाया गया।
ज्योतिर्मठ शंकराचार्य द्वारा सनातन संरक्षण परिषद् का गठन
कुंभक्षेत्र प्रयागराज में संवत् 2081 पौष शुक्ल चतुर्दशी को परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती 1008 की उपस्थिति में सनातन संरक्षण परिषद का गठन किया गया। इस आयोजन में धर्म और आस्था की महत्ता को रेखांकित करते हुए, धर्मस्थलों की सुरक्षा और प्रबंधन को लेकर महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए गए।
परिषद् गठन की पृष्ठभूमि
- गाय का आगमन: उत्तराखंड की बदरीश गाय का संसद में आगमन हुआ, जिसे सनातन धर्म में 33 कोटि देवी-देवताओं का निवास माना जाता है।
- धर्म स्थलों की स्थिति: परिषद में यह चिंता व्यक्त की गई कि सरकारी हस्तक्षेप के कारण धर्मस्थलों की गरिमा पर असर पड़ रहा है।
- प्रस्ताव: धर्म स्थलों का प्रबंधन सनातनी परंपराओं के अनुरूप हो और गैर-धार्मिक अथवा विधर्मी व्यक्तियों को इनसे दूर रखा जाए।

मुख्य निर्णय और घोषणाएँ
- सनातन संरक्षण परिषद् का गठन: प्रसिद्ध मंदिरों और धर्मस्थलों की गरिमा और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इस परिषद का गठन किया गया।
- धर्म स्थलों का धार्मिक प्रबंधन: परिषद ने सुझाव दिया कि मंदिरों और मठों का प्रबंधन केवल उन व्यक्तियों के हाथों में होना चाहिए, जो सनातन धर्म को गहराई से समझते हैं और उसका पालन करते हैं।
- सरकारी हस्तक्षेप पर रोक: धर्मस्थलों के प्रबंधन में धर्मनिरपेक्ष या विधर्मी व्यक्तियों की नियुक्ति के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया गया।
विशेष घटनाएँ और वक्तव्य
- धर्माचार्यों का संदेश: धर्मस्थलों के प्रबंधन और प्रशासन को धार्मिक रीति-नीति से संचालित करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
- श्रीमद्भागवत का संदर्भ: धर्मस्थलों की गरिमा की रक्षा न करने से होने वाली हानि को श्रीमद्भागवत के श्लोक के माध्यम से समझाया गया।
आगामी कार्यक्रम और योजना
परमधर्म संसद में 15 जनवरी से आगे के सत्र आयोजित किए जाएंगे। इस दौरान धर्म, संस्कृति और सनातन परंपराओं से जुड़े अन्य विषयों पर चर्चा होगी।


