Pegasus Spyware: आज का साइबर सुरक्षा विचार, Pegasus — निगरानी और लीक का देवता
रिपोर्ट: हेमंत कुमार
Pegasus को “निगरानी और लीक का देवता” कहा जाता है, क्योंकि इसमें स्मार्टफोन में बिना किसी जानकारी के प्रवेश करने, विशाल मात्रा में डेटा निकालने और उपयोगकर्ता की गतिविधियों पर लगातार नजर रखने की अद्भुत क्षमता है — वह भी एन्क्रिप्टेड ऐप्स और सिस्टम के भीतर। इज़राइल की कंपनी NSO ग्रुप द्वारा विकसित यह स्पायवेयर अब तक के सबसे शक्तिशाली डिजिटल हथियारों में से एक माना जाता है। इसने साइबर जासूसी की दुनिया को पूरी तरह बदल दिया है, जहां अब केवल पासवर्ड या लिंक नहीं, बल्कि सिस्टम की गहराई में छिपी कमजोरियां ही लक्ष्य बनती हैं।
Pegasus की ताकत इसकी ज़ीरो-क्लिक क्षमता में है — इसे सक्रिय करने के लिए किसी लिंक या फाइल पर क्लिक करने की आवश्यकता नहीं होती। यह मिस्ड कॉल, पुश नोटिफिकेशन या ऑपरेटिंग सिस्टम की खामियों के माध्यम से खुद-ब-खुद डिवाइस में प्रवेश कर लेता है। एक बार इंस्टॉल होने के बाद यह फोन के सभी डेटा तक पहुंच बना लेता है — संदेश, ईमेल, फोटो, वीडियो, कॉल लॉग, कॉन्टैक्ट्स, यहां तक कि WhatsApp, Signal और Telegram जैसे एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म्स से भी जानकारी निकाल लेता है। Pegasus माइक्रोफोन और कैमरा को दूर से नियंत्रित कर सकता है, जिससे फोन एक मोबाइल जासूसी डिवाइस में बदल जाता है। इसके अलावा, यह GPS डेटा ट्रैकिंग के जरिए उपयोगकर्ता की हर गतिविधि और लोकेशन को रीयल-टाइम में मॉनिटर करता है।
सबसे खतरनाक पहलू इसका स्टील्थ मोड है — Pegasus न केवल खुद को छिपा सकता है बल्कि जरूरत पड़ने पर स्वयं को डिलीट भी कर लेता है ताकि फॉरेंसिक जांच में कोई निशान न बचे। यही कारण है कि इसे “लीक का देवता” कहा जाता है। यह एन्क्रिप्शन को तोड़ता नहीं, बल्कि डेटा को एन्क्रिप्ट या डिक्रिप्ट होने के क्षणों में इंटरसेप्ट कर लेता है।
Pegasus के दुरुपयोग को लेकर दुनिया भर में विवाद खड़ा हुआ। “Pegasus प्रोजेक्ट” नामक जांच में खुलासा हुआ कि 45 देशों में 50,000 से अधिक फोन नंबरों को इस स्पायवेयर से निशाना बनाया गया, जिनमें पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता, राजनयिक और राजनीतिक नेता शामिल थे। Apple ने NSO ग्रुप पर मुकदमा दायर किया, जबकि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इसके उपयोग की जांच के लिए तकनीकी समिति गठित की। Amnesty International और Citizen Lab जैसे संगठनों ने इसे लोकतंत्र, निजता और प्रेस स्वतंत्रता के लिए खतरा बताया।
Pegasus की भयावह क्षमता ने यह स्पष्ट कर दिया है कि डिजिटल सुरक्षा अब केवल तकनीकी मुद्दा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय है। इसके मद्देनज़र कुछ आवश्यक संदेश सामने आते हैं —
• हर व्यक्ति को यह मानकर चलना चाहिए कि उसका डिवाइस असुरक्षित हो सकता है।
• केवल एन्क्रिप्टेड ऐप्स का उपयोग पर्याप्त नहीं है।
• स्वदेशी साइबर सुरक्षा समाधान विकसित करना आवश्यक है ताकि विदेशी निगरानी उपकरणों पर निर्भरता घटे।
• नागरिकों को साइबर स्वच्छता, संदिग्ध लिंक से बचाव और डिवाइस अपडेट रखने की आदत डालनी चाहिए।
Pegasus ने यह सिखाया है कि डिजिटल युग में सतर्कता ही सुरक्षा है।
“Pegasus सिर्फ एक स्पायवेयर नहीं, बल्कि एक अदृश्य शिकारी है — यह आपके संदेश पढ़ सकता है, कॉल सुन सकता है और बिना बताए आपको देख सकता है। सावधान रहें। अपने फोन को अपडेट रखें। संदिग्ध लिंक से दूर रहें। डिजिटल सतर्कता ही असली राष्ट्रीय सुरक्षा है।”


