शंकराचार्य जी ने सभा में उपस्थित हजारों लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि शास्त्रों में धरती के सात आधार बताए गए हैं, जिनमें पहला आधार स्वयं गौमाता हैं। जब धरती माता असुरों से परेशान होती हैं तो वे गौस्वरूप धारण करके भगवान के पास जाती हैं। तुलसीदास ने भी लिखा है “संग भूमि बेचारी गो तन धारी”। इसलिए यदि हम गौमाता की रक्षा नहीं करेंगे तो धरती का अस्तित्व भी संकट में पड़ जाएगा।
उन्होंने कहा कि आज योजनाबद्ध ढंग से गौमाता की हत्या की जा रही है, क्योंकि गौघी से हवन करने पर देवता प्रसन्न होकर धर्म की रक्षा करते हैं। यही कारण है कि अधर्मी और विधर्मी लोग सुनियोजित तरीके से गौहत्या को बढ़ावा दे रहे हैं। इस चुनौती का मुकाबला केवल योजनाबद्ध और एकजुट होकर ही किया जा सकता है।
अपने संबोधन में शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म के भीतर फैलाए जा रहे वैमनस्य पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र – सभी एक ही परमात्मा की संतान हैं। इन चारों वर्णों की उत्पत्ति विराट पुरुष के शरीर से हुई है। “शूद्र को नीचा कहने वाले यदि साहस रखते हैं तो अपना पैर काट कर दिखाएं,” उन्होंने कहा। शंकराचार्य जी ने स्पष्ट किया कि वर्ण व्यवस्था कर्मों पर आधारित है, किसी की ऊँच-नीच पर नहीं। अतः अब समय आ गया है कि हम सभी मिलकर गौमाता और सनातन धर्म की रक्षा करें।
शंकराचार्य जी ने यह भी कहा कि जब राजनेता धर्म में हस्तक्षेप करते हैं तो संतों को राजनीति से दूर रहने का उपदेश देना उचित नहीं है। उन्होंने मंथरा विचारधारा को समाज को गर्त में ले जाने वाला बताया और कहा कि यह कभी अनुकरणीय नहीं हो सकती।
सभा के दौरान शंकराचार्य जी के चरण पादुका का पूजन और आरती भी की गई। इस अवसर पर गौमतदाता संकल्प यात्रा के संयोजक स्वामी प्रत्यक्चैतन्यमुकुंदानंद गिरी, श्रीलाल बाबा, श्री नीलमणि जी, सुबोध कुमार चौधरी और देवेंद्र पाण्डेय ने भी उपस्थित जनसमूह को संबोधित किया।


