स्वामी शङ्कराचार्य जी ने आयुर्वेद को हिंदू चिकित्सा पद्धति के रूप में अपनाने का आह्वान किया और इसे भारत की प्राथमिक चिकित्सा पद्धति घोषित करने की आवश्यकता बताई।
नई दिल्ली, 17 जनवरी – 17 जनवरी को परम धर्म संसद में परमाराध्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर, जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्री अविमुक्तेश्वरानन्द जी सरस्वती १००८ के मार्गदर्शन में “आयुर्वेद हिंदू चिकित्सा पद्धति पर विचार” विषय पर विशेष चर्चा आयोजित की गई। इस सभा में स्वामी जी ने आयुर्वेद के महत्व को रेखांकित करते हुए इसे हिंदू चिकित्सा पद्धति के रूप में स्वीकार करने का आग्रह किया।
स्वामी शङ्कराचार्य जी ने कहा कि हिंदू शास्त्रों में शरीर को सबसे महत्वपूर्ण धर्मसाधन माना गया है, क्योंकि शारीरिक स्वास्थ्य के बिना कोई भी धार्मिक कार्य नहीं किया जा सकता। उनका कहना था कि शरीर की पवित्रता बनाए रखना आवश्यक है, क्योंकि अपवित्र शरीर और मन से धार्मिक कार्यों की सिद्धि असंभव है। इस संदर्भ में आयुर्वेद का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है, क्योंकि यह न केवल शरीर की सुरक्षा करता है बल्कि उसकी पवित्रता को बनाए रखने में भी मदद करता है।
स्वामी जी ने यह भी स्पष्ट किया कि आयुर्वेद न केवल शारीरिक उपचार के लिए है, बल्कि यह आत्मिक उन्नति और मानसिक शांति के लिए भी आवश्यक है। आयुर्वेद में साइड इफेक्ट्स की संभावना कम होती है, और यह शरीर, मन, इंद्रियों और आत्मा को संतुलित रखता है। उन्होंने आयुर्वेद को भारत की सबसे पुरानी और विश्वसनीय चिकित्सा पद्धति बताया, जो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।
स्वामी जी ने यह सुझाव भी दिया कि आयुर्वेद को भारत की प्राथमिक चिकित्सा पद्धति घोषित किया जाना चाहिए ताकि सभी भारतीयों को इस प्राचीन चिकित्सा पद्धति का लाभ मिल सके। उन्होंने सरकार से भी अनुरोध किया कि आयुर्वेद को राष्ट्रीय चिकित्सा पद्धति के रूप में बढ़ावा दिया जाए और इसके प्रचार-प्रसार के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं।
चर्चा के दौरान, इंग्लैंड से आईं साध्वी वन देवी जी ने आयुर्वेद के लाभों पर बात करते हुए कहा कि अंग्रेजी दवाइयां शरीर पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं, जबकि आयुर्वेद शरीर के प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखता है। रामलखन पाठक जी ने आर्गेनिक भोजन के लाभों पर जोर दिया और कहा कि प्राकृतिक आहार से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है, जिससे बीमारियों से बचाव होता है।
साध्वी पूर्णाम्बा जी ने ब्रह्मचारी केशवानंद जी के निधन पर शोक प्रस्ताव प्रस्तुत किया और सभी धर्मांसदों से उनके योगदान को याद करने का अनुरोध किया। इसके बाद, विभिन्न धर्मांसदों ने आयुर्वेद और उसकी महत्वता पर अपने विचार रखे।
अनुसुईया प्रसाद उनियाल जी ने पंचगव्य और आयुर्वेद की अन्य उपयोगी विधियों पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि आयुर्वेद में हर समस्या का समाधान है और यह शरीर के हर अंग को स्वस्थ रखने में सहायक है।
स्वामी शङ्कराचार्य जी ने कहा कि प्राचीन समय में घर में दादी-नानी ही परिवार के वैद्य होती थीं और वे घरेलू उपचार से आधी से ज्यादा बीमारियों का इलाज कर देती थीं। उन्होंने यह भी कहा कि आयुर्वेद को हमे अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाना चाहिए ताकि हम शारीरिक, मानसिक और आत्मिक रूप से स्वस्थ रह सकें।
चर्चा के बाद, स्वामी जी ने एक परमधर्मादेश जारी करते हुए आयुर्वेद को भारत की प्राथमिक चिकित्सा पद्धति बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।