Cyber Crime India: साइबर अपराध अब सीमाओं का नहीं, पूरे समाज का खतरा: आज का साइबर सुरक्षा विचार
रिपोर्ट: हेमंत कुमार
नई दिल्ली, “साइबर अपराध अब कोई सीमांत खतरा नहीं है—यह नागरिकों, संस्थानों और अर्थव्यवस्थाओं के खिलाफ आधुनिक युद्ध की अग्रिम पंक्ति बन चुका है।” यह बात ब्रिटेन के सुरक्षा मंत्री डैन जार्विस ने कही, और यह चेतावनी भारत जैसे देश के लिए भी उतनी ही प्रासंगिक है। इंग्लैंड और वेल्स में साइबर अपराध कुल अपराधों का लगभग आधा हिस्सा बन चुका है। भारत में भी तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्य इसी दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं। तेलंगाना में हाल के वर्षों में 30,000 से अधिक साइबर अपराध के मामले दर्ज किए गए, जबकि कर्नाटक 2025 में इसी आंकड़े के करीब पहुंच चुका है।
साइबर अपराध केवल व्यक्तिगत स्तर तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह डिजिटल वित्तीय धोखाधड़ी, पहचान की नकल, निवेश घोटाले और यौन शोषण जैसे जटिल रूपों में सामने आ रहे हैं। तेलंगाना में सिर्फ एक महीने में ₹157 करोड़ से अधिक की साइबर धोखाधड़ी हुई, जिससे स्पष्ट होता है कि इस खतरे का आर्थिक और सामाजिक प्रभाव बड़ा है। बावजूद इसके, दोष सिद्धि की दर बेहद कम है, और स्थानीय थानों में डिजिटल जांच के लिए प्रशिक्षण और उपकरणों की कमी इसे और गंभीर बनाती है।
इस गंभीर स्थिति का सामना करने के लिए विशेषज्ञों ने कई रणनीतिक उपाय सुझाए हैं। इनमें सबसे पहले सशक्त और राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त साइबर कमांड सेंटर (CCC) का गठन है, जो हेल्पलाइन 1930 के माध्यम से धोखाधड़ी की तुरंत पहचान और कार्रवाई सुनिश्चित करेगा। इसके साथ ही एकीकृत राष्ट्रीय साइबर अपराध ग्रिड बनाया जाना चाहिए, जिससे राज्य ब्यूरो, बैंक, टेलीकॉम और कानून प्रवर्तन रीयल-टाइम डेटा साझा कर सकें। AI-संचालित डैशबोर्ड के जरिए म्यूल अकाउंट, दोहराए गए अपराधी और फ्रॉड हॉटस्पॉट की पहचान भी आसान होगी।
नागरिक-केंद्रित त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली के तहत क्षेत्रीय भाषाओं में वित्तीय साइबर धोखाधड़ी रिपोर्टिंग का विस्तार और ग्रामीण इलाकों में मोबाइल साइबर वैन तैनात करने की योजना है। इससे शिकायत पंजीकरण और जागरूकता बढ़ेगी। साथ ही क्षमता निर्माण और अधिकारी स्थायित्व पर ध्यान देना होगा। CyTrain और MOOC प्लेटफॉर्म के माध्यम से साइबर अपराध जांच प्रशिक्षण अनिवार्य किया जाएगा और CCC अधिकारियों के स्थानांतरण कम से कम 2 वर्षों तक स्थगित किए जाएंगे।
कानूनी सुधार और फास्ट-ट्रैक अदालतें भी जरूरी हैं। डिजिटल फ्रॉड के लिए ज़ीरो-FIR प्रोटोकॉल लागू करना और तकनीकी सलाहकारों के साथ फास्ट-ट्रैक पीठों का गठन करना इसके अंतर्गत आता है। इसके अलावा, व्यवहारिक प्रोफाइलिंग और पूर्वानुमान आधारित पुलिसिंग से अपराधी प्रोफाइलिंग डेटा का उपयोग करके फ्रॉड ट्रेंड का अनुमान लगाया जा सकेगा और संवेदनशील वर्गों—वरिष्ठ नागरिक, छोटे व्यवसाय और छात्र—को पूर्व चेतावनी दी जा सकेगी।
साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि “साइबर अपराध दरवाज़ा नहीं खटखटाता—वह भीतर घुसता है। हर नागरिक को जागरूकता से लैस होना चाहिए, हर अधिकारी को उपकरणों से, और हर प्रणाली को लचीलापन से। आइए एक साइबर-सुरक्षित भारत बनाएं—एक अलर्ट से शुरुआत करें।” सतर्क रहें, सुरक्षित रहें; आपकी जागरूकता ही आपकी सबसे मजबूत फ़ायरवॉल है।


