Cyber Security India: भारत में साइबर अपराध बढ़ते खतरे के रूप में: जागरूकता और कार्रवाई जरूरी
रिपोर्ट: हेमंत कुमार
भारत में साइबर अपराधों की बढ़ती लहर अब गंभीर चिंता का विषय बन गई है। 2025 के आंकड़ों के अनुसार, देशभर में साइबर अपराधों में 30% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है। फिर भी, बड़ी संख्या में पीड़ित इन अपराधों की शिकायत दर्ज नहीं कराते, जिनका मुख्य कारण डर, अविश्वास और सिस्टम से निराशा है। विशेषज्ञों का कहना है कि “साइबर शिकायत करना उत्पीड़न नहीं है—यह देशहित में है।”
गृह मंत्रालय ने i4C और दूरसंचार विभाग के माध्यम से धोखाधड़ी की रिपोर्टिंग प्रक्रिया को बेहद सरल और यूज़र-फ्रेंडली बनाया है। बावजूद इसके, बहुत से लोग अभी भी शिकायत दर्ज करने से हिचकिचा रहे हैं। विशेषज्ञों का सुझाव है कि इसके लिए नागरिकों के मन में सिस्टम पर भरोसा बहाल करना और रिपोर्टिंग प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाना आवश्यक है।
साइबर अपराध, विशेषकर वित्तीय धोखाधड़ी और पहचान की चोरी के मामलों में तेज़ और पारदर्शी एफआईआर प्रक्रिया लागू करना जरूरी है। हर पुलिस स्टेशन में प्रशिक्षित अधिकारियों के साथ समर्पित साइबर हेल्पडेस्क स्थापित किया जाना चाहिए, ताकि पीड़ितों को दोषी ठहराने का डर न रहे। सफल मामलों की कहानियों का प्रचार कर जनता में न्याय की उम्मीद पैदा की जा सकती है।
जन-जागरूकता के लिए भावनात्मक जुड़ाव बहुत महत्वपूर्ण है। पोस्टर और वीडियो में वास्तविक अनुभवों का उपयोग किया जाना चाहिए, जैसे कि किसी पीड़ित का कहना, “मुझे लगा कुछ नहीं होगा, लेकिन मैंने शिकायत की—और मुझे मेरा पैसा वापस मिला।” साथ ही चुप्पी की कीमत को भी स्पष्ट किया जाना चाहिए: “हर अनरिपोर्टेड स्कैम अगले अपराध को फंड करता है।”
रिपोर्टिंग प्रक्रिया को आसान बनाना भी आवश्यक है। राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल को पहला कदम बनाया जाना चाहिए, न कि अंतिम विकल्प। हेल्पलाइन 1930 का उपयोग बढ़ाने के लिए भी कदम उठाए जाने चाहिए। अधिकारियों को सहानुभूति और दक्षता के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, और साइबर अपराध प्रशिक्षण में पीड़ित मनोविज्ञान के मॉड्यूल शामिल किए जाने चाहिए। फॉलो-अप कॉल करके शिकायतकर्ताओं को जवाबदेही और संवेदनशीलता दिखाना भी बहुत जरूरी है।
तकनीकी समाधान के रूप में, AI टूल्स का उपयोग करके बार-बार होने वाले स्कैम पैटर्न को ऑटो-फ्लैग किया जाना चाहिए और विभिन्न क्षेत्रों के मामलों को लिंक किया जाना चाहिए। समुदाय-आधारित सत्यापन और सहयोग को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए, खासकर संवेदनशील मामलों में, जैसे सेक्सटॉर्शन या डीपफेक दुरुपयोग के लिए गुमनाम रिपोर्टिंग विकल्प उपलब्ध कराना।
नीति स्तर पर सुधार की दिशा में डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 को नागरिक-केंद्रित सुरक्षा उपायों के साथ लागू किया जाना चाहिए। विशेषज्ञों का मानना है कि नागरिकों की जागरूकता ही उनकी सबसे मजबूत फ़ायरवॉल है। सतर्क रहें, सुरक्षित रहें।



