AI Cyber Threats: साइबर युद्ध का नया युग: AI को दुश्मन नहीं, सुरक्षा सहयोगी बनाना होगा
रिपोर्ट: हेमंत कुमार
“AI खतरों के युग में, केवल AI सुरक्षा ही डिजिटल सुरक्षा प्रदान कर सकती है।” यह वाक्य आज के साइबर सुरक्षा युग का सार है। तकनीक की गति जितनी तेज़ हुई है, उतनी ही तीव्रता से डिजिटल अपराधों की प्रकृति भी बदल चुकी है। जहां एक ओर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने समाज और व्यवसाय में क्रांति लाई है, वहीं दूसरी ओर इसने साइबर अपराधियों के लिए नए रास्ते खोल दिए हैं।
आज 80% से अधिक फ़िशिंग हमले AI की सहायता से हो रहे हैं। AI द्वारा तैयार किए गए ईमेल, डीपफेक वीडियो, और वॉयस क्लोनिंग जैसे हथियार अब बेहद सटीक और विश्वसनीय लगते हैं, जिससे आम नागरिक, बैंक अधिकारी और यहां तक कि अनुभवी विशेषज्ञ भी धोखे का शिकार हो जाते हैं।
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश के लिए यह एक गंभीर खतरा बन चुका है। अकेले 2024 में साइबर अपराधों के कारण ₹22,812 करोड़ की चपत देश को लगी। लेकिन सवाल यह है: क्या हमारा साइबर इन्फ्रास्ट्रक्चर इन हमलों को रोकने के लिए तैयार है?
AI-संचालित साइबर अपराध से निपटने के लिए आवश्यक पुलिस उपकरण:
1. AI-आधारित खतरा पहचान प्रणाली:
हर थाने में ऐसी प्रणालियां होनी चाहिए जो रियल-टाइम में फ़िशिंग लिंक का पता लगाएं, संदेहास्पद वित्तीय गतिविधियों का विश्लेषण करें, और आवाज़ की नक़ल जैसी तकनीकों को पहचान सकें।
2. डिजिटल फोरेंसिक और लिंक विश्लेषण प्लेटफॉर्म:
Maltego, IBM i2 जैसे प्लेटफॉर्म की मदद से साइबर अपराध नेटवर्क, म्यूल अकाउंट्स, और क्रिप्टो वॉलेट्स की कड़ियों को जोड़ा जा सकता है। सीमापार सबूतों को संरक्षित करने के लिए क्लाउड आधारित साक्ष्य संग्रहण भी आवश्यक है।
3. साइबर इंटेलिजेंस और मॉनिटरिंग डैशबोर्ड:
AI-ड्रिवन डैशबोर्ड्स घोटालों के पैटर्न, हॉटस्पॉट क्षेत्रों और नए ट्रेंड्स की निगरानी कर सकते हैं। साथ ही डार्क वेब और टाइपो-स्क्वाटिंग वेबसाइट्स पर भी निगाह रखी जा सकती है।
4. तेज़ कार्रवाई वाला इन्फ्रास्ट्रक्चर:
बैंकिंग और टेलीकॉम के साथ समन्वय स्थापित कर संदिग्ध ट्रांजैक्शन वाले अकाउंट तुरंत फ्रीज़ करने, और 1930 हेल्पलाइन के माध्यम से रीयल-टाइम सूचना प्रसारण करने की व्यवस्था हर साइबर थाने में होनी चाहिए।
5. प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण:
AI आधारित अपराधों की जांच के लिए पुलिस कर्मियों को विशेष प्रशिक्षण देना अनिवार्य है। उन्हें सिमुलेशन बेस्ड लर्निंग, फ़िशिंग डेमो, और सोशल इंजीनियरिंग के केस स्टडीज़ पर आधारित कोर्स दिए जाएं।
6. जन-जागरूकता और सामुदायिक सहभागिता:
AI चैटबॉट्स के जरिए नागरिकों को रिपोर्टिंग में मदद दी जा सकती है। साथ ही स्कूलों, कॉलेजों, ग्रामीण इलाकों में क्षेत्रीय भाषाओं में गेम-आधारित साइबर सुरक्षा शिक्षा अभियान चलाना ज़रूरी है।
कुछ अग्रणी राज्य जैसे गोवा पहले ही AI उपकरणों को अपनाने की दिशा में कदम बढ़ा चुके हैं। लेकिन अधिकांश राज्यों के पास अभी भी डिजिटल फोरेंसिक की मूलभूत सुविधाएं भी नहीं हैं। यदि भारत को AI-संचालित साइबर युद्ध में आगे बढ़ना है, तो तकनीकी संसाधनों, प्रशिक्षण और नीति-निर्माण को प्राथमिकता देनी ही होगी।


