Digital Arrest Scam: डिजिटल गिरफ़्तारी स्कैम, जागरूकता का समय अब है, नहीं तो बहुत देर हो जाएगी
रिपोर्ट: हेमंत कुमार
आज के दौर में साइबर सुरक्षा सिर्फ़ एक तकनीकी चुनौती नहीं, बल्कि सामाजिक और मानवीय संकट बन चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रीय जागरूकता अभियानों की अपील और तमाम प्रयासों के बावजूद, डिजिटल गिरफ़्तारी स्कैम लगातार भारत के नागरिकों को निशाना बना रहे हैं। हाल ही में गुजरात में एक प्रतिष्ठित डॉक्टर से मात्र 90 दिनों में ₹19 करोड़ की धोखाधड़ी हुई—यह एक चौंकाने वाला मामला है जो बताता है कि यह केवल व्यक्तिगत असावधानी नहीं, बल्कि संगठित और वैश्विक साइबर आपराधिक नेटवर्क की उपज है।
क्यों हो रहे हैं ये स्कैम बार-बार सफल?
सबसे पहले, स्कैमर्स पीड़ितों के दिमाग़ी हालातों को निशाना बनाते हैं। वे डर, जल्दबाज़ी और कानूनी कार्रवाई के नाम पर भ्रम का वातावरण बनाते हैं। वीडियो कॉल पर पीड़ित को अलग-थलग करके उससे गोपनीयता की शपथ ली जाती है और फिर फर्जी आरोप दिखाकर पैसों की मांग की जाती है।
इसके पीछे तकनीकी रूप से दक्ष गिरोह होते हैं। वे नकली पहचान पत्र, कोर्ट वारंट, और यहां तक कि डीपफेक वीडियो का भी इस्तेमाल करते हैं, ताकि पीड़ित को विश्वास हो कि सामने कोई असली अधिकारी ही है। SIP लाइन और क्लाउड-आधारित कॉलिंग सिस्टम के चलते स्कैमर्स की पहचान और लोकेशन छिपी रहती है।
ये नेटवर्क सीमाओं से परे जाकर काम करते हैं। कंबोडिया, म्यांमार और लाओस जैसे देशों में ऐसे स्कैम कॉल सेंटर्स चलाए जाते हैं। कमजोर प्रत्यर्पण समझौतों और वहां की सरकारों की सुस्त प्रतिक्रिया से इन्हें सुरक्षा मिलती है।
चौंकाने वाली बात यह भी है कि इन स्कैम्स में भारतीय डेटा लीक और कुछ मामलों में भीतर से मिलीभगत भी पाई गई है। आधार और बैंक जानकारी, SIM बदलाव और IMEI का हेरफेर इन स्कैमर्स को लगातार फायदा पहुंचाता है।
भारतीय कानून में बड़ी खामियाँ हैं—आज भी “डिजिटल गिरफ़्तारी” जैसा कोई अपराध विधिवत रूप से परिभाषित नहीं है। इसी का फायदा उठाकर स्कैमर्स फर्जी कानूनी आरोप लगाते हैं और तुरंत पैसे की मांग करते हैं।
अब क्या करना चाहिए?
- कॉलर की अनिवार्य पहचान:
टेलीकॉम कंपनियाँ SIP कॉलर्स के लिए अनिवार्य KYC लागू करें। WhatsApp जैसे प्लेटफार्मों पर अज्ञात नंबर से आने वाली “सरकारी अधिकारी” कॉल्स पर रोक लगाई जाए। - तेज़ साइबर प्रतिक्रिया प्रणाली:
1930 साइबर हेल्पलाइन को बैंकिंग सिस्टम से जोड़ा जाए ताकि संदिग्ध ट्रांज़ैक्शन्स तुरंत रोके जा सकें। गुजरात केस में CID द्वारा ₹1 करोड़ की रिकवरी इसका उदाहरण है। - कानूनी सुधार:
डिजिटल गिरफ़्तारी स्कैम को भारतीय न्याय संहिता और आईटी अधिनियम में स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाए। पश्चिम बंगाल की तरह, जहाँ 9 साइबर अपराधियों को आजीवन कारावास दिया गया, वैसे ही कड़े निर्णय देश भर में लागू हों। - सीमा पार कार्रवाई:
ASEAN देशों के साथ मिलकर साइबर स्कैम सेंटर्स को खत्म किया जाए। भारत को कूटनीतिक तरीके से इन देशों से मास्टरमाइंड्स को प्रत्यर्पित कराना और विदेशी संपत्ति फ्रीज़ करना चाहिए। - पीड़ितों को कलंक से मुक्त करना:
समाज को सोच बदलनी होगी—“वो कैसे फंसे?” नहीं, बल्कि “हम इसे कैसे रोकें?” यह सवाल पूछना ज़रूरी है। पीड़ितों को सहयोग और मानसिक समर्थन मिलना चाहिए।
⚠ याद रखें:
“वीडियो कॉल पर गिरफ्तारी सिर्फ स्कैम में होती है। कानून में नहीं।”
Digital arrest is a fraud, not a legal process. Report it—don’t fear it.


